“शहर सारा फिर सन्न-सा पड़ा है,
किसी सूने मकान जैसा,
इमारतें खोखली हैं सारी…
की रात के एक बजे हैं,
रास्ते हैं वीरान…
की घरों में लोग नींद ले रहे होंगे,
कल नया हफ़्ता कसने को तैयार जो होना है,
और कोई शायर कहीं…
सुर्ख़ आँखें किए बैठा हो शायद,
ये सोचकर बस की…
‘ये शहर जो सूना पड़ा है अभी सारा,
कल फिर इसमें शोर होगा,
भीड़ होगी,
मुझे घर जाना है मगर,
मैं मकान में इसके घुट रहा हुँ’!”
©️निशा मिश्रा