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‘मुलाक़ात’ (Meeting)

“कभी आओगे न तुम मिलने मुझसे?

तो ख़ाली हाथ ही आना,

कुछ काग़ज़ मैं लाऊँगी,

एक पेन….

तुम अपनी शर्ट-पाकेट में रख लाना,

मिलकर ढेरों बातें करेंगे,

हंसेंगे और थोड़ा घूमेंगे,

तुम बताना…

क़िस्से मुझे अपने आफिस के,

मैं भी तुम्हें…

कहानियाँ कुछ सुनाऊँगी,

शाम को अलविदा लेने से पहले…

मत भूलना तुम…

अपना पेन मेरे हवाले करना,

मैं याद रखूँगी वो मुलाक़ात,

काग़ज़ में लिखकर फिर…

पते पर तुम्हारे?

सब कुरियर कराऊँगी,

सुनो?

मिलने आओगे न तुम मुझसे?”

(ख़याल: मुलाकात)

© निशा मिश्रा

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Hope

उम्मीदें (Hopes)

“तिनका तिनका करके उम्मीद जोड़ी हैं,
तन्हा बैठकर निहारा है रंगों को,
देखा है बेहतरीन और बेढंगो को,
कोशिशें और हिम्मत जुटाकर, 
कांधों पर से बोझ हटाकर, 
लेते हुए लुत्फ हवा का, 
तिनका तिनका करके उम्मीद जोड़ी हैं,  
हर शाम सर में वो दर्द जो होता है, 
पैरों का सूजना मौसम सर्द जब होता है,
वो लालसा नींद की, सुकून की, 
जाने कौन चैन की नींद सोता है?
लेके मन में अजीब सी ये बातें, 
तिनका तिनका करके उम्मीद जोड़ी हैं!!”

© निशा मिश्रा ©

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poetry

लिखेंगे (Will write!)

“काखों में दबाए हुए वो छोटी सी डायरी,
आज  निकलेंगे बाहर,
लिखने को हिसाब…
उस हर वक्त का, जो बीत गया,
लिखेंगे की कौन मिला,
कब, कहां, कैसे का भी लेखा जोखा किया जाएगा,
लिखेंगे कब सुबके सबसे छुपकर,
लिखेंगे कब ठहाके लगाए, क्यों किस बात पर,
लिखेंगे  हर जगह की पूरानी, खट्टी मीठी यादें,
लिखेंगे सारी सुनी-कही बातें,
लिख डालेंगे, हर जगह जो देखी, उसके बारे,
लिखे जाऐंगे कहानी और किस्से सारे,
सपने कुछ जो सच हुए, लिखेंगे,
सपने जो अभी रह गए, लिखेंगे,
प्यार से जिसने जो कहा, लिखा जाएगा,
हर डांट, और कुटाई के बारे भी लिखेंगे,
और लिख चुकने के बाद,
हम भी हँसकर कहेंगे,
की
‘देखो! उम्र बीती है,
थोड़ी सी और रहती है,
टीले भी बनाए-बिगाड़े हैं ख्वाबों के,
जिंदगी भी बहुत प्यार से समेटी हैं’…. ”

© निशा मिश्रा