“कभी आओगे न तुम मिलने मुझसे?
तो ख़ाली हाथ ही आना,
कुछ काग़ज़ मैं लाऊँगी,
एक पेन….
तुम अपनी शर्ट-पाकेट में रख लाना,
मिलकर ढेरों बातें करेंगे,
हंसेंगे और थोड़ा घूमेंगे,
तुम बताना…
क़िस्से मुझे अपने आफिस के,
मैं भी तुम्हें…
कहानियाँ कुछ सुनाऊँगी,
शाम को अलविदा लेने से पहले…
मत भूलना तुम…
अपना पेन मेरे हवाले करना,
मैं याद रखूँगी वो मुलाक़ात,
काग़ज़ में लिखकर फिर…
पते पर तुम्हारे?
सब कुरियर कराऊँगी,
सुनो?
मिलने आओगे न तुम मुझसे?”
(ख़याल: मुलाकात)
© निशा मिश्रा